गंगा
आज के समय में एक प्रश्न मन को कौंधता रहता है की भारत के लिए क्या है गंगा ? क्यों भारत में इसी अभी तक पूजा जाता है? क्यों गंगा को इतना महत्त्व दिया जाता है ? आइये भारत की इस गंगा के बारे में कुछ गहराई से जानते है।
गंगा भारत के लिए माँ सामान है। भारतीय पुराणों में गंगा को पूजनीय कहा गया है, कष्ट निवारक बताया गया है, कहा गया है की गंगा में अगर कोई स्नान कर ले तो उसके सारे पाप धूल जाते है। भारत में गंगा सिर्फ एक नदी नहीं है बल्कि ये एक मंदिर समान पूजनीय स्थल है।
पर क्या वाकई में गंगा अभी तक इतनी शुद्ध है जितना इसे पुराणों में बताया गया है? क्या गंगा की शुद्धता अभी भी कायम है? भारत में गंगा की क्या स्थिति है इतनी दयनीय हो चुकी है जिसकी कोई सीमा नहीं है। भारत की हरित अधिकरण संस्था “राष्ट्रीय हरित अधिकरण” (NGT) ने कुछ समय पहले ही सरकार के खिलाफ अपनी नाराज़गी जाहिर की और कहा की हरिद्वार से उत्तर प्रदेश के उन्नाव के बीच पूजनीय गंगा नदी का जल पीने योग्य नहीं है पीने योग्य तो छोड़िये गंगा नदी का जल नहाने योग्य भी नहीं है। इस जल के सेवन से और इसके स्नान से स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। एन.जी.टी. कहती है की जब सिगरेट के पैकेट पर स्वास्थ्य सम्बन्धी चेतावनी होती है तो क्यों न जनता को गंगा नदी से होने वाले दुष्प्रभाव के बारे में जानकारी दी जाये। एन.जी. टी. ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा हर 100 किलोमीटर के दायरे में डिस्प्ले बोर्ड लगाने के लिए कहा है जिससे पता चल सके की गंगा का जल पीने लायक नहाने लायक है या नहीं। इसी के साथ एन.जी.टी. ने गंगा मिशन एवं केंद्रीय प्रदुषण बोर्ड को 2 सप्ताह में वेबसाइट पर एक मानचित्र लगाने के लिए कहा है, जिसमे बताया जायेगा की किन-किन स्थानों पर गंगा का जल पीने लायक और नहाने लायक है या नहीं।
इन सभी के मध्य उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आदेश जारी किया की 15 दिसम्बर से गंगा में गंदे नाले का पानी नहीं जायेगा। गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिए प्रधानमंत्री जी ने 20,000 करोड़ रूपये “नमामि गंगे” नाम की एक परियोजना के तहत उपलब्ध कराया है।
इतने रूपये की योजना होने के बावजूद गंगा अभी तक साफ़ नहीं हुई है कई जगह तो गंगा का पानी नहाने लायक भी नहीं है। और इसी बीच बनारस में पानी के लिए एक एडवेर्सरी भी जारी की है।
“नमामि गंगे” योजना के तहत 20,000 करोड़ रूपये खर्च किये जाने है और गंगा नदी का जीर्णोद्धार करना है पर मुझे नहीं लगता के ये सरकार गंगा को एक नया रूप दे पायेगी। मोदी सरकार ने इस योजना को जून 2014 में शुरू किया था और यह आश्चर्य की बात है की केंद्र की मोदी सरकार ने गंगा को निर्मल बनाने के लिए इन 4 सालो में सिर्फ 6,000 करोड़ रूपये ही खर्च किये है। इन 6,000 करोड़ रूपये का परिणाम भी कुछ नज़र नहीं आता एवं एक आर.टी.आई. के विवरण से पता चलता है की मोदी सरकार ने इन 4 सालो में परियोजना के लिए कुल आवंटन 5,523.22 करोड़ रूपये रहा। जबकि एनएमसीजी द्वारा इस राशि से केवल 3,867.48 करोड़ रुपये खर्च किए हैं।
पिछली यूपीए सरकार ने वर्ष 2011-12 के बीच कुल आवंटन राशि 688.05 करोड़ रुपये थी जबकि एनएमसीजी द्वारा खर्च की गई राशि केवल 454.8 9 करोड़ रुपये थी।
मोदी सरकार द्वारा निजी कम्पनियो को आकर्षित करने के लिए जो भी प्रयास किये उन प्रयासो को भी ज़्यदा सफलता नहीं मिली है। अभी कुछ दिन पहले ही खबर आई थी की बीजेपी सरकार ने विज्ञापन दिखने के मामले में विदेशी ऑनलाइन एंटरटेनमेंट कंपनी नेटफ्लिक्स को भी पीछे छोड़ दिया… तो अब आप ही अंदाजा लगा सकते हे ही जनता का पैसा कहाँ जा रहा है। वैसे खबर ये भी है की बीजेपी सरकार चंदा मिलने में भी अव्वल नंबर पर है। भारत की सभी सरकार बस खुद का विकास करने में व्यस्त है और हम इन सरकारों को दोष देने में व्यस्त है।
तो मित्रो “विकास” कही खो गया है। गंगा अब मैली हो चुकी है। सभी सरकारे हमने चुन कर देख ली पर गंगा और मैली होती चली गई। अब अपनी समझदारी ही गंगा को अमृत बना सकती है। बाकी आप खुद समझदार है।
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